(श्री जसराजजी सोलंकी, मुंबई के शब्दों में )
परम आदरणीय समाज बंधुओ,
जय श्री विट्ठल
आज में आपसे एक विशेष विषय पर आप सबकी राय जानना चाहता हु, की समाज बंधू आपस में मिले तथा फ़ोन करे तो किस नाम से संबोधन करे "जय श्री विट्ठल" या "जय श्री नामदेव"।
सर्वप्रथम में आपको यह बता देता हु की संत नामदेवजी के प्रति मेरे मन में अपार सम्मान है, जिन्होंने हमें ज्ञानभक्ति द्वारा परमेश्वर को पाने का तरीका बताया। साथ ही परोपकार, प्रेमभक्ति, समभाव, धेर्य, हर्दय की शुद्धता, समर्पण की भावना, जीवन की सच्चाई की अपने अभंगो में सरलतम व्याख्या की, ताकि हम उनके उपदेशो को जीवन में उतारकरअपने दुर्लभ मनुष्य जीवन को सफल बना सके उसके लिए हमारा समाज ही नही बल्कि पुरी मानवजाती उनकी जन्म जन्मान्तर ऋणी रहेगी।
आज अगर संत नामदेवजी भी हमारे साथ होते तो वे स्वयं का जयकारा का संबोधन कभी नही कराते बल्कि भगवन का जयकारा कराते। कोई भी संत या सदगुरु अपने शिष्यों को जो गुरुमंत्र भी देते है तो भगवन का नाम उसमे अवश्य होता है उसका मूल कारन यही है की प्रभु का नाम स्मरण से ही हम परमानन्द को प्राप्त करते हुए चोरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त हो सकते है।
संत तुलसीदास जी ने भी अपने इस दोहे में भगवान नाम की महिमा की व्याख्या इस प्रकार की है :-
"कलयुग केवल नाम अधारा, सिमर सिमर भव: उतारहु पारा"
उपरोक्त दोहे का भावार्थ यही हे कि इस कलयुग में केवल प्रभु के स्मरण से ही आप भवसागर पार कर सकते है तो हम भी संबोधन में प्रभु का नाम लेकर हमारी नैया प्रभु के हवाले कर देवे।
परम आदरणीय समाज बंधुओ,
जय श्री विट्ठल
आज में आपसे एक विशेष विषय पर आप सबकी राय जानना चाहता हु, की समाज बंधू आपस में मिले तथा फ़ोन करे तो किस नाम से संबोधन करे "जय श्री विट्ठल" या "जय श्री नामदेव"।
सर्वप्रथम में आपको यह बता देता हु की संत नामदेवजी के प्रति मेरे मन में अपार सम्मान है, जिन्होंने हमें ज्ञानभक्ति द्वारा परमेश्वर को पाने का तरीका बताया। साथ ही परोपकार, प्रेमभक्ति, समभाव, धेर्य, हर्दय की शुद्धता, समर्पण की भावना, जीवन की सच्चाई की अपने अभंगो में सरलतम व्याख्या की, ताकि हम उनके उपदेशो को जीवन में उतारकरअपने दुर्लभ मनुष्य जीवन को सफल बना सके उसके लिए हमारा समाज ही नही बल्कि पुरी मानवजाती उनकी जन्म जन्मान्तर ऋणी रहेगी।
आज अगर संत नामदेवजी भी हमारे साथ होते तो वे स्वयं का जयकारा का संबोधन कभी नही कराते बल्कि भगवन का जयकारा कराते। कोई भी संत या सदगुरु अपने शिष्यों को जो गुरुमंत्र भी देते है तो भगवन का नाम उसमे अवश्य होता है उसका मूल कारन यही है की प्रभु का नाम स्मरण से ही हम परमानन्द को प्राप्त करते हुए चोरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त हो सकते है।
संत तुलसीदास जी ने भी अपने इस दोहे में भगवान नाम की महिमा की व्याख्या इस प्रकार की है :-
"कलयुग केवल नाम अधारा, सिमर सिमर भव: उतारहु पारा"
उपरोक्त दोहे का भावार्थ यही हे कि इस कलयुग में केवल प्रभु के स्मरण से ही आप भवसागर पार कर सकते है तो हम भी संबोधन में प्रभु का नाम लेकर हमारी नैया प्रभु के हवाले कर देवे।
जैसा कि आप सभी जानते है कि कोई भी समाज में संतो के नाम का जयकारा नही होता है। यहाँ में कुछ समाज का उदाहरण दे रहा हू :-
समाज का नाम = संबोधन
१ पुरोहित समाज = जय श्री रघुनाथजी
२ रावल समाज = जय महादेव
३ अग्रवाल व महेश्वरी समाज = जय सियाराम
४ माली, कुम्हार, लुहार, चौधरी व सनातम धर्म कि कई जातियां = राम राम, जय रामजी की, जय श्री कृष्ण
४ माली, कुम्हार, लुहार, चौधरी व सनातम धर्म कि कई जातियां = राम राम, जय रामजी की, जय श्री कृष्ण
५ मेघवाल समाज = जय रामदेवजी
६ अन्य ........ हरी ॐ
(अपने समाज में भी ज्यादातर लोग "जय रामजी की" ही बोलते है)
उपरोक्त पुरा अध्धयन करने के पश्चात मुझे ऐसा लग रहा है कि हमें "जय श्री विट्ठल" या "जय श्री कृष्ण" के नाम का संबोधन करना ज्यादा उचित है, कृष्ण व विट्ठल एक दुसरे के पर्यायवाची शब्द है, संत नामदेवजी कृष्ण भगवान को सदा विट्ठल नाम से ही पुकारते थे।
उपरोक्त विचार मेरे अपने है, में आप सब कि राय को भी जानना चाहता हु, आपकी राय का स्वागत है।
अंत में श्री विट्ठल भगवान से प्रार्थना करता हु कि आप सदा समाज बंधुओ पर ऐसे ही कृपा बरसते रहे, संत शिरोमणि श्री नामदेवजी महाराज से भी अरज करता हु आप भी समाज पर आशीर्वाद बनाये रखे, ताकि समाज में आपस में प्रेम भाव बढे तथा खूब तरक्की करे।
आपका
जसराज सोलंकी
भायंदर (मुंबई)
उपरोक्त विचार मेरे अपने है, में आप सब कि राय को भी जानना चाहता हु, आपकी राय का स्वागत है।
अंत में श्री विट्ठल भगवान से प्रार्थना करता हु कि आप सदा समाज बंधुओ पर ऐसे ही कृपा बरसते रहे, संत शिरोमणि श्री नामदेवजी महाराज से भी अरज करता हु आप भी समाज पर आशीर्वाद बनाये रखे, ताकि समाज में आपस में प्रेम भाव बढे तथा खूब तरक्की करे।
आपका
जसराज सोलंकी
भायंदर (मुंबई)
13 comments:
Dear Jasrajji,
Thanks for sending us your thought and we have published the same in our blog for open discussion.
We would like to inform all our samaj members that we received views of shri jasrajji solanki through courier and at his request this thread has been started.
We invite comments from our samaj members on this subject.
It is also our request to all our samaj members that if anyone wish to start new thread for discussion please feel free to contact us. we will post your views in this blog and invite comments from our samaj bandhus.
jaisa aap sabhee ko bhaye.par ham to yahi kahenge,narayan narayan
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें
श्री नारदमुनी एवं श्री अजय कुमार
ब्लॉग में आपका स्वागत है तथा हम आशा और अपेक्षा करते है कि आप अपने विचारो से समाज को समय समय पर अवगत कराते रहेंगे.
धन्यवाद
Samaj bandhu jasrajji se kehna chahunga ki aap "DEVBAND DARUL " ke jaise Controversial baatein na karen, Bhagwan ek hai , kya fark padta use kisi bhi naam se pukare, aap samaaj me kaise vikas ho, samaj kaise unnati kare use par vichar rakhege to achha hoga , 21 century me aisi dakianusi baatein chippa samaj ko shobha nahi deti hai, baki aapki marji jai hind , vande mataram, jai maharastra
श्री हेरी,
ब्लॉग में आपका स्वागत. धन्यवाद अपने विचार हमारे साथ बाटने के लिए. हम आशा करते है की भविष्य में भी आप अपने विचार इस ब्लॉग के माध्यम से समाज तक पहुचाते रहेंगे.
“SAMAJ BANDHUO DWARA “JAI SHREE NAMDEV KA ABHIVADAN KITNA UCHIT”?
A rarest of rare thinking of one of our SAMAJ BANDHU?
“I say it is cent percent UCHIT”
A welcome note or greet some one by saying “Jai Shree Krishna” instead of “Jai Shree Namdev” is like separation of ghee from milk. In any manner of making the acquaintance, is a gesture and the discussion on the subject is superfluous & unwanted. To greet by someone to anyone is his / her own choice & sensible matter.
I use many type of gesture note with different cast & communities. It depends upon “Desh, Kaal aur Vatavaran”.
Remembrance of any deity by any name or any mode, it will be listen by him. We can use any name of God / Saint, it is your inner feeling that count.
JAI SHREE NAMDEV
Dear Ashokji,
Thanks for posting your views and nice to see you after such a long time.
Please keep surfing and posting your views.
Yatra ka Lootara ki Asliyat ko publish karo.
Unko Ba-Nakab Karo.
SKPANWAR
Dear Suresh ji
Can U tell me the problem in not making my "Report on Jagan Nath Puri Yatra 2012"
to Public i.e through Namdeo samaj print/e-media.
Pl. tell me your constraint if any.
Reply at following add.
skpanwar1949@gmail.com
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